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मेक इन इंडिया

मेक इन इंडिया


मेक इन इंडिया अभियान


‘मेक इन इंडिया’ भाजपा के नेतृत्व वाली राजग सरकार का प्रमुख अभियान है, जिसे घरेलू विनिर्माण उद्योग को बढ़ावा देने और विदेशी निवेशकों को भारतीय अर्थव्यवस्था में निवेश के लिए आकर्षित करने के लिए शुरु किया गया। भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने लाल किले की प्राचीर से स्वतंत्रता दिवस पर दिए अपने पहले भाषण में इस अभियान का उल्लेख किया था और लगभग एक महीने बाद सितंबर 2014 में इसे शुरु भी कर दिया। इसे शुरु करने का उद्देश्य भारत से बाहर जा रहे ज्यादातर उद्यमियों को रोकने के लिए भारत के प्रमुख क्षेत्रों में निर्माण व्यवसायों को पुनर्जीवित करना था।

मेक इन इंडिया विज़न
वर्तमान में देश के सकल घरेलू उत्पाद में विनिर्माण का योगदान 15 प्रतिशत है। इस अभियान का लक्ष्य एशिया के अन्य विकासशील देशों की तरह इस योगदान को बढ़ाकर 25 प्रतिशत करना है। इस प्रक्रिया में सरकार को उम्मीद है कि ज्यादा से ज्यादा रोजगार उत्पन्न होगा, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश आकर्षित होगा और भारत को विनिमार्ण केंद्र में तब्दील किया जा सकेगा। 

मेक इन इंडिया अभियान का ‘लोगो’ एक खूबसूरत शेर है जो अशोक चक्र से प्रेरित है और भारत की हर क्षेत्र में सफलता दर्शाता है। यह अभियान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सन् 1916 में जन्में प्रसिद्ध देशभक्त, दार्शनिक और राजनीतिक व्यक्तित्व पंडित दीनदयाल उपाध्याय को समर्पित किया।

प्रधानमंत्री क्यों चाहते हैं मेक इन इंडिया?
प्रधानमंत्री ने इस अभियान से जुड़े सभी लोगों को, खासकर उद्यमियों और कंपनियों को बुलाया और उन्हें आगे आने और भारतीय नागरिक के रुप में ‘फस्र्ट डेवलेपिंग इंडिया’ के माध्यम से अपने कर्तव्यों का पालन करने और निवेशकों को देश में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश करने का आह्वान किया। प्रधानमंत्री ने यह भी वादा किया कि प्रशासन निवेशकों को भारत में एक सुखद अनुभव देगा और उनकी सरकार देश के समग्र विकास को विश्वास की वस्तु के तौर पर लेगी ना कि राजनीतिक एजेंडे की तरह। उन्होंने ‘मेक इन इंडिया’ को बेहतर बनाने के लिए ‘डिजिटल इंडिया’ की भी मजबूत नींव रखी। उन्होंने रोजगार पैदा करने और गरीबी हटाने पर भी जोर दिया जिससे इस अभियान को सफलता मिल सके।

शुभारंभ समारोह
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ‘मेक इन इंडिया’ को 25 सितंबर 2014 को शुरु किया। यह दिन ज्यादा से ज्यादा फायदा लेने के लिए चुना गया। पूरी तरह से स्वदेशी तौर पर निर्मित और कम लागत वाले मंगलयान की सफल प्रविष्टि ने भारत की निर्माण, विज्ञान और प्रौद्योगिकी में कम से कम लागत में सफलता पर प्रकाश डाला। यह प्रधानमंत्री की पहली अमेरिका यात्रा से सिर्फ एक दिन पहले था। निवेश के लक्ष्य के तौर पर भारत का आकषर्ण बढ़ाने के लिए इस अभियान के लाॅन्च का समारोह दिल्ली के विज्ञान भवन में रखा गया। पूरा हाॅल मेहमानों से भरा था, कई लोगों को तो बैठने के लिए कुर्सी भी नहीं मिल पाई। 30 देशों की 3000 प्रमुख कंपनियों के सीईओ और उद्यमियों को इस समारोह में आने का न्यौता भेजा गया था।

विधि मंत्री श्री रविशंकर प्रसाद और वाणिज्य मंत्री निर्मला सीतारमन भी इस अवसर पर मौजूद थे। इनके अलावा देश की बड़ी कार्पोरेट कंपनियों के प्रमुखों ने भी इस समारोह को संबोधित किया। इनमें टाटा संस के अध्यक्ष साइरस मिस्त्री, मारुति सुजुकी इंडिया के एमडी और सीईओ श्री केनिची अयुकावा, रिलायंस इंडस्ट्रीज के अध्यक्ष और एमडी श्री मुकेश अंबानी, विप्रो के अध्यक्ष अजीम प्रेमजी, आदित्य बिड़ला ग्रुप के अध्यक्ष के एम बिड़ला, आईसीआईसीआई बैंक की एमडी और सीईओ चंदा कोचर, लाॅकहीड मार्टिन के सीईओ फिल शाॅ और आईटीसी के अध्यक्ष वाई सी देवेश्वर शामिल थे।

फोकस वाले क्षेत्र
‘मेक इन इंडिया’ अभियान के लिए सरकार ने प्राथमिकता वाले 25 क्षेत्र चिन्हित किये हैं जिन्हें प्रोत्साहन दिया जाएगा। इन क्षेत्रों में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश और संभावना सबसे अधिक है और भारत सरकार द्वारा भी निवेश को बढ़ाया जाएगा। अभियान के शुभारंभ के मौके पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि इन क्षेत्रों में विकास से पूरी दुनिया आसानी से एशिया, खासकर भारत में आ सकती है। विशेषकर भारत इसलिए क्योंकि यहां की लोकतांत्रिक स्थितियां और विनिर्माण की श्रेष्ठता इसे निवेश का सबसे अच्छा स्थान बनाती हैं। वह भी प्रशासन के प्रभावी प्रशासनिक इरादों के साथ।

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‘मेक इन इंडिया’ के फायदे और नुकसान
भारत प्राकृतिक संसाधनों से समृद्ध देश है। यहां देश में शिक्षित वर्ग में काफी बेरोजगारी होते हुए भी कुशल श्रमिक आसानी से उपलब्ध हैं। एशिया के आउटसोर्सिंग हब के रुप में विकसित होने के साथ ही भारत जल्दी ही विश्व के ज्यादातर निवेशकों के लिए पसंदीदा विनिर्माण लक्ष्य बनता जा रहा है। ‘मेक इन इंडिया’ भारत सरकार का भारतीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने का प्रयास है। 

‘आसान व्यापार करने के सूचकांक’ में भारत का स्थान बहुत नीचे है। देश के श्रम कानून ‘मेक इन इंडिया’ अभियान के लिए सहायक नहीं हैं। भारत में निवेश और विनिर्माण के लिए सब जगह इन कारणों को एक नुकसान के रुप देखा जाता है। 

भारत में कंपनियां विनिर्माण क्यों नहीं करतीं?
‘मेक इन इंडिया’ अभियान चीन के ‘मेक इन चाईना’ का परस्पर प्रतियोगी है। ‘मेक इन चाईना’ ने पिछले एक दशक में काफी रफ्तार पकड़ी है। आउटसोर्सिंग, विनिर्माण और सेवा क्षेत्र में चीन भारत का प्रमुख प्रतिद्वंदी है। विनिर्माण का केंद्र बनने में भारत का खराब बुनियादी ढ़ांचा और खराब संचालन व्यवस्था सबसे बड़ी बाधा है। पिछली सरकारों का नौकरशाही नजरिया, मजबूत परिवहन की कमी और बड़े पैमाने पर फैला भ्रष्टाचार निर्माताओं के लिए समय पर उत्पादन करना मुश्किल करता है। मोदी सरकार ने इन सब बाधाओं को दूर करने का वादा किया है जिससे निवेशकों के लिए यहां उद्योग स्थापित करना आसान हो।

‘मेक इन इंडिया’ वेबसाइट
भारत में निवेश की जानकारी के लिए रंगीन ब्रोशर के अलावा सरकार ने इस अभियान के लिए एक वेबसाइट भी बनाई है। ‘मेक इन इंडिया’ वेबसाइट 25 क्षेत्रों को उनके आंकड़ों, विकास के कारकों, हर एक क्षेत्र में निवेश के लिए अनुकूल नीतियों, सरकारी सहायता और निवेशकों के लिए अवसरों को हाइलाइट करती है। इसके अलावा उन्हें लाइव परियोजनाएं दिखाना और पूछे गए प्रश्नों का जवाब भी देती है। अभियान के लिए वेबसाइट सोशल मीडिया जैसे ट्विटर, फेसबुक, गूगल प्लस और यू ट्यूब लिंक जोड़ती है। 

आलोचना और चिंता
राजग सरकार के ‘मेक इन इंडिया’ अभियान से अक्टूबर 2014 तक 2,000 करोड़ रुपये के निवेश के प्रस्ताव आ चुके थे। इस अभियान को काफी आलोचना भी मिली है। इसकी सबसे ज्यादा आलोचना सत्ताधारी सरकार के खिलाफ हुई है। ये महसूस किया गया कि ‘मेक इन इंडिया’ अभियान की सफलता के लिए जरुरी श्रम सुधारों और नीतिगत सुधारों को अमल में नहीं लाया गया है। नोकिया इंडिया जैसी कंपनियों में छंटनी जैसी घटनाओं से इस तरह के अभियान पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। प्रौद्योगिकी आधारित कंपनियां इस अभियान से खासी प्रभावित नहीं हैं और अब भी अपने कंपोनेंट्स का निर्माण चीन में करवा रही हैं। 

अभियान का नाम: मेक इन इंडिया
लाॅन्च की तारीख: 25 सितंबर 2014
किसने लाॅन्च किया: प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने
क्षेत्रों की संख्या: 25
निवेश प्रस्ताव: 9 अक्टूबर 2014 तक 2,000 करोड़ रुपये

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