भारत के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी
दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र यानी भारत को 1947 में आजादी मिली थी। वह भारत के इतिहास का ऐसा दिन है, जिसे सदियों बाद भी भुलाया नहीं जा सकेगा। भारत ने कई सौ साल के ब्रिटिश शासन से आजादी पाई थी। सिर्फ अंग्रेजों ने ही नहीं बल्कि कई अन्य ने भी हमारे देश पर शासन किया। शुरुआत हुई आर्यों से, जो मध्य यूरोप से आए। फिर फारसी, ईरानी और पारसी, जो पलायन कर भारत आए थे। फिर आए मुगल जो यहां आकर यहीं के हो गए। कई मर्तबा, मंगोल शासकों ने भी भारत पर हमला किया और लूटकर चले गए। पुर्तगालियों और फ्रेंच ने भी हमारे यहां आकर अपने उपनिवेश बनाए। आखिरकार, ब्रिटिश आए और कई वर्षों तक देश पर राज किया। भारत को आजादी इतनी आसानी से नहीं मिली। यह किसी भी देश के लिए आसान काम नहीं होता कि वह कई वर्षों से राज कर रहे शासक के चंगुल से निकल जाए। देश में स्वतंत्रता संग्राम कई दशक तक चला और आजादी हासिल करने में इस संघर्ष ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की भूमिका
भारत के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने देश की आजादी के लिए व्यापक भूमिका निभाई। 1857 की क्रांति को भारत की आजादी के पहले स्वतंत्रता संग्राम के तौर पर जाना जाता है। आंदोलन की शुरुआत ईस्ट इंडिया कंपनी के सिपाहियों की बगावत से हुई थी। मुस्लिम और हिंदू सिपाहियों ने एक साथ आकर क्रांति की शुरुआत की। रानी लक्ष्मीबाई, मंगल पांडे, बहादुर शाह जफर, नाना साहिब और तात्या टोपे जैसे कई नेताओं ने इस संग्राम में महती भूमिका निभाई और क्रांति में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। मंगल पांडे को आधुनिक भारत में हीरो माना जाता है क्योंकि उन्होंने ब्रिटिशर्स के खिलाफ बगावत की मशाल जलाई थी। रानी लक्ष्मीबाई को ब्रिटिश शासन की राह में सबसे बड़ी बाधा के तौर पर देखा गया। वह 1857 में बागियों की प्रमुख नेता थीं।
1876 में, ब्रिटिश शासन के खिलाफ एक और आंदोलन शुरू हुआ। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (आईएनसी) की स्थापना हुई। सुरेंद्रनाथ बनर्जी ने पार्टी की स्थापना की। बाल गंगाधर तिलक, दादाभाई नौरोजी, चित्तरंजन दास और जवाहरलाल नेहरू आईएनसी के प्रमुख नेताओं में से एक रहे। मोहनदास करमचंद गांधी ने पार्टी को जन-जन तक पहुंचाने का काम किया और अहिंसक तरीके से स्वतंत्रता के संघर्ष को मजबूती दी। उनका असहयोग आंदोलन बहुत सफल रहा और उसे भारतीय आजादी के आंदोलन में मील का पत्थर माना जाता है।
दो विचारधाराओं का टकराव
एक ओर, गांधी अहिंसा और शांति की विचारधारा पर चल रहे थे, वहीं दूसरी ओर युवाओं का एक समूह ऐसा भी था जो किसी भी तरह आजादी हासिल करना चाहता था। इन क्रांतिकारियों ने भी कई लोगों को प्रेरित किया और देश में प्रभावशाली स्थान पाया। चंद्रशेखर आजाद, राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाकउल्ला खान, जोगेश चंद्र चटर्जी, जैसे कुछ क्रांतिकारियों को काकोरी कांड के लिए मौत की सजा दी गई। भगत सिंह, बटुकेश्वर दत्त, सुखदेव थापड़, शिवराम राजगुरु ने असेंबली हाउस पर बम फेंका था। इस घटना के बाद भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी पर चढ़ा दिया गया। आज उन्हें शहीदों के तौर पर याद किया जाता है। इन युवाओं ने सायमन कमीशन के खिलाफ प्रदर्शन के दौरान लाला लाजपत राय की हत्या का बदला लेने के लिए यह कार्रवाई की थी।
सुभाष चंद्र बोस को एक डायनामिक लीडर के तौर पर जाना जाता है। देश की आजादी की लड़ाई में उनकी एक अलग पहचान है। उनकी भूमिका स्वराज पार्टी बनाने में महत्वपूर्ण रही। यह एक मजबूत राष्ट्रीय पार्टी थी, जो देश को आजादी की ओर ले जाने के लिए ही बनी थी।
कई अन्य स्वतंत्रता संग्राम सेनानी हैं, जो देश के लिए लड़े और अपने जीवन का बलिदान दिया।
आजादी के बाद की भूमिका
इन स्वतंत्रता संग्राम सनानियों के बलिदान और संघर्ष की बदौलत भारत ने 15 अगस्त 1947 को अंग्रेजों की दासता से आजादी पाई। उन्होंने मुश्किल वक्त का सामना किया और बलिदान दिए, उसकी बदौलत देश को आजादी मिली। महात्मा गांधी ने संघर्ष को जनआंदोलन बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया, उन्हें राष्ट्रपति के तौर पर याद किया जाता है। डॉ. राजेंद्र प्रसाद भारत गणतंत्र के पहले राष्ट्रपति बने। जवाहर लाल नेहरू भारत के पहले प्रधानमंत्री बने और सरदार वल्लभभाई पटेल देश के पहले उप-प्रधानमंत्री। बीआर आंबेडकर को भारत के संविधान निर्माता के तौर पर सदैव याद किया जाएगा।
वर्तमान में भारत
भारत को अंग्रेजों से आजादी मिले सात दशक हो गए हैं और देश ने काफी तेज गति से प्रगति की है। आर्थिक और सामाजिक मोर्चे पर देश तेजी से विकास कर रहा है। यदि स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने स्वतंत्रता संग्राम में अपना योगदान न दिया होता तो आज देश की स्थिति बहुत अलग होती। भारत एक लोकतांत्रिक गणतंत्र के तौर पर सफलता हासिल न कर पाता। हम स्वतंत्र और आजाद हैं क्योंकि हमारे देश के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने इसके लिए कोशिश की और बलिदान दिए।
भारत को अंग्रेजों से आजादी मिले सात दशक हो गए हैं और देश ने काफी तेज गति से प्रगति की है। आर्थिक और सामाजिक मोर्चे पर देश तेजी से विकास कर रहा है। यदि स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने स्वतंत्रता संग्राम में अपना योगदान न दिया होता तो आज देश की स्थिति बहुत अलग होती। भारत एक लोकतांत्रिक गणतंत्र के तौर पर सफलता हासिल न कर पाता। हम स्वतंत्र और आजाद हैं क्योंकि हमारे देश के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने इसके लिए कोशिश की और बलिदान दिए।
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के नाम
सरदार वल्लभ भाई पटेल | सुभाष चंद्र बोस |
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बिपिन चंद्र पाल | चंद्र शेखर आजाद |
दादाभाई नौरोजी | खुदीराम बोस |
राम मनोहर लोहिया | मंगल पांडे |
महादेव गोविंद रानाड़े | राम प्रसाद बिस्मिल |
मौलाना अबुल कलाम आजाद | रास बिहारी बोस |
जवाहरलाल नेहरू | शिवराम राजगुरु |
लाला हरदयाल | रानी लक्ष्मी बाई |
महात्मा गांधी | शहीद भगत सिंह |
मोतीलाल नेहरू | सुखदेव |
राम सिंह कुका | लाला लाजपत राय |
अशफाकउल्लाह खान | वीर सावरकर |
बाल गंगाधर तिलक | लक्ष्मी सहगल |
अब्दुल गफ्फार खान | भीम सेन सच्चर |
बेगम हजरत महल | आचार्य कृपलानी |
चित्तरंजन दास | अरुणा आसफ अली |
सुरेंद्रनाथ बनर्जी | जतींद्र मोहन सेनगुप्ता |
श्री एलुरी सीताराम राजू | मदन मोहन मालवीय |
पुष्पलता दास | नेली सेनगुप्ता |
सागरमल गोपा | पंडित बालकृष्ण शर्मा |
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