इलाहाबाद विश्वविद्यालय देश का एकमात्र ऐसा विश्वविद्यालय है, जिसने प्रशासनिक क्षेत्रों में सबसे ज्यादा सफल छात्र दिए हैं। आज शिक्षा का ये मंदिर अपनी स्थापना के 129 वर्ष पूरे कर रहा है। इस अवसर पर आज तीन बजे शाम को सीनेट हाल में विवि प्रशासन द्वारा भव्य कार्यक्रम का आयोजन किया गया है।
दरअसल, यह देश के इस विवि के लिए ऐतिहासिक दिन है और ये महज एक संयोग ही है कि कल छात्रसंघ चुनावों में प्रत्याशियों के नामांकन का भी दिन है। यानी की आज पूरे दलबल और धूमधड़ाके के साथ प्रत्याशियों द्वारा अपनी उम्मीदवारी पेश की जाएगी।
बहरहाल, पूरब का ऑक्सफोर्ड कहे जाने वाला विख्यात इलाहाबाद विश्वविद्यालय भारत का एक प्रमुख विश्वविद्यालय होने के साथ केंद्रीय विश्वविद्यालय भी है । सबसे ख़ास बात ये है कि यह आधुनिक भारत के सबसे पहले विश्वविद्यालयों में से एक है और इसीलिए इसे 'पूर्व के ऑक्सफोर्ड' नाम से जाना जाता है। आपको बता दें इसकी स्थापना आज ही के दिन 23 सितम्बर सन् 1887 ई. को एल्फ्रेड लायर कीप्रेरणा से हुई थी। इस विश्वविद्यालय का नक्शा प्रसिद्र अंग्रेज वास्तुविद इमरसन ने बनाया था।
गौरतलब है की 1866 में इलाहाबाद में म्योर कॉलेज की स्थापना हुई जो आगे चलकर इलाहाबाद विश्वविद्यालय के रूप में विकसित हुआ। आज भी यह इलाहाबाद विश्वविद्यालय का महत्त्वपूर्ण हिस्सा है। म्योर कॉलेज का नाम तत्कालीन संयुक्त प्रांत के गवर्नर विलियम म्योर के नाम पर पड़ा। उन्होंने 24 मई 1876 को इलाहाबाद में एक स्वतंत्र महाविद्यालय तथा एक विश्वविद्यालय के निर्माण की इच्छा प्रकट की थी। 1969 में योजना बनी। उसके बाद इस काम के लिए एक शुरुआती कमेटी बना दी गई जिसके अवैतनिक सचिव प्यारे मोहन बनर्जी बने। 23 सितंबर 1887 को एक्ट XVII पास हुआ और कलकत्ता, बंबई तथा मद्रास विश्वविद्यालयों के बाद इलाहाबाद विश्वविद्यालय उपाधि प्रदान करने वाला भारत का चौथा विश्वविद्यालय बन गया। इसकी प्रथम प्रवेश परीक्षा मार्च 1889 में हुई।
ये वही इलाहाबाद विश्वविद्यालय है जिसने मोतीलाल नेहरू , गोविन्द वल्लभ पन्त ,शंकर दयाल शर्मा , गुलजारी लाल नन्दा , विश्वनाथ प्रताप सिंह , चन्द्रशेखर सूर्य बहादुर थापा (नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री), नारायण दत्त तिवारी , हेमवती नन्दन बहुगुणा , मुरली मनोहर जोशी , शान्ति भूषण जैसे राजनेता और महादेवी वर्मा , हरिवंश राय बच्चन , धर्मवीर भारती , भगवती चरण वर्मा , आचार्य नरेन्द्र देव , चन्द्रधर शर्मा 'गुलेरी' जैसे लेखक एवम् शिक्षाविद् दिए हैं।
देश के अन्य राज्य-विश्वविद्यालयों के समान ही प्रवेश लेने वालों की भारी भीड़ के बीच इस विश्वविद्यालय को भी उच्च शिक्षा के स्तर को बनाए रखने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। सबसे ख़ास बात ये है कि विश्वविद्यालय प्रति छात्र संसाधनों की उपलब्धता और अध्यापक मण्डली और विद्यार्थियों में आमने-सामने के आदर्श व्यवहार को बनाए रखने में सफल रहा है।
दरअसल, जब से पुनः छात्रसंघ चुनावों को मंजूरी मिली है, उसके बाद से लगातार छात्रसंघ और विवि प्रशासन के बीच दूरियां बढ़ती चली जा रही है और जब तक दोनों के बीच सामन्जस्य स्थापित नहीं होगा, तब तक विवि के माहौल में परिवर्तन नही आएगा और ऐसा ही हाल रहेगा। उम्मीद है, अब आने वाला छात्रसंघ विवि से एक अच्छा संवाद स्थापित करेगा, जिससे कैम्पस में छात्रों की पढ़ाई का माहौल बन सकेगा। विवि प्रशासन को भी बदलते समयानुसार अपनी नीति में कुछ आवश्यक परिवर्तन करने होंगे।